अभिशाप


क्यों है मेरा हृदय आज इतना हताश
निरंतर घट रही घटनाओं से निराश

PLASTIC


मन में नही है कोई सार्थक विचार
जैसे हो गया मैं पूर्णतः निराधार

CORONA

स्तब्ध हूं परन्तु कारण विलुप्त
शिथिल शरीर है लक्ष्य है गुप्त
जीव हत्या मूल मंत्र बन चुका है
मनुष्य अधर्म राह बढ़ चला है

DEPRESSION

प्राकृतिक उपहारों को नष्ट करना
दानव मानव अपना हक़ मान चुका है


सारी सृष्टि उथल पुथल है
जो सफल, उत्तम था आज विफल है

DEFORESTATION

हर दिशा में अंधकार ही अंधकार
असंगठित हो गया है सम्पूर्ण संसार

FLOOD


मानव विकास हो चुका तुच्छ हास्य पात्र
मेरे मन मष्तिष्क में है एक प्रश्न मात्र

POISNOUS AIR

चिन्तन सरल नहीं अत्यंत जटिल है
मानव विनाश निकट स्तिथि विकट है
पर्वत नदियां सागर आज मौन है
धरती माता की दुर्दशा का उत्तरदायी कौन है

GLACIER MELTING
रमन उपाध्याय

16 thoughts on “अभिशाप

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  1. बहुत अच्छा प्रयास रमन भाई। अपने मन के विचार को कविता के माध्यम से व्यक्त करना। इस जीवन की भाग दौड़ मे जब भी समय मिले लिखना चाहिए । हम सब की शुभकामनाएँ ।

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    1. धन्यवाद अरविंद जी।
      आपका समर्थन ही हमारा प्रेरणास्रोत है।
      आशा है आपका आशीर्वाद हमे आगे भी मिलता रहेगा। जय श्री राम

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  2. Bahut hi khubsurat…..sarahniye kavita….pratyek panktiyan prashan khada karti huyee….

    चिन्तन सरल नहीं अत्यंत जटिल है
    मानव विनाश निकट स्तिथि विकट है
    पर्वत नदियां सागर आज मौन है
    धरती माता की दुर्दशा का उत्तरदायी कौन है

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    1. धन्यवाद मधुसुधन जी ..
      कविता का सार समझने के लिए। आपके comment’s हमे प्रेरणा देते हैं।

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