क्यों है मेरा हृदय आज इतना हताश
निरंतर घट रही घटनाओं से निराश
मन में नही है कोई सार्थक विचार
जैसे हो गया मैं पूर्णतः निराधार
स्तब्ध हूं परन्तु कारण विलुप्त
शिथिल शरीर है लक्ष्य है गुप्त
जीव हत्या मूल मंत्र बन चुका है
मनुष्य अधर्म राह बढ़ चला है
प्राकृतिक उपहारों को नष्ट करना
दानव मानव अपना हक़ मान चुका है
सारी सृष्टि उथल पुथल है
जो सफल, उत्तम था आज विफल है
हर दिशा में अंधकार ही अंधकार
असंगठित हो गया है सम्पूर्ण संसार
मानव विकास हो चुका तुच्छ हास्य पात्र
मेरे मन मष्तिष्क में है एक प्रश्न मात्र
चिन्तन सरल नहीं अत्यंत जटिल है
मानव विनाश निकट स्तिथि विकट है
पर्वत नदियां सागर आज मौन है
धरती माता की दुर्दशा का उत्तरदायी कौन है
रमन उपाध्याय
Ek number Bhai jaan bhut gjb
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Thanks
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true lines…
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Thank you so much di..
I m happy.. Thanks again
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What a nice poetry
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Thanks bhaii
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बहुत अच्छा प्रयास रमन भाई। अपने मन के विचार को कविता के माध्यम से व्यक्त करना। इस जीवन की भाग दौड़ मे जब भी समय मिले लिखना चाहिए । हम सब की शुभकामनाएँ ।
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धन्यवाद अरविंद जी।
आपका समर्थन ही हमारा प्रेरणास्रोत है।
आशा है आपका आशीर्वाद हमे आगे भी मिलता रहेगा। जय श्री राम
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Bahut hi khubsurat…..sarahniye kavita….pratyek panktiyan prashan khada karti huyee….
चिन्तन सरल नहीं अत्यंत जटिल है
मानव विनाश निकट स्तिथि विकट है
पर्वत नदियां सागर आज मौन है
धरती माता की दुर्दशा का उत्तरदायी कौन है
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धन्यवाद मधुसुधन जी ..
कविता का सार समझने के लिए। आपके comment’s हमे प्रेरणा देते हैं।
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nice bro😢
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धन्यवाद अजय जी
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Very nice 👌
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Great job bro
Success will kiss your feet very early 👌👌👌
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Thank you so much
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Nyc poem 👌👌👌👌
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